संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की भारतीय इंजीनियरिंग सेवा (आईईएस) परीक्षा में 2023 और 2024 में लगातार शानदार प्रदर्शन करने वाले सिद्धार्थ कुमार सिंह एक बार फिर चर्चा में हैं, लेकिन इस बार उनके चयन से ज्यादा उनके आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) प्रमाणपत्र की वैधता पर सवाल उठ रहे हैं। सिद्धार्थ ने 2023 में ऑल इंडिया रैंक (AIR) 118 और 2024 में AIR 28 हासिल कर महराजगंज के निचलौल तहसील का नाम रोशन किया था। लेकिन अब उन पर EWS कोटे का दुरुपयोग करने का आरोप लगा है, क्योंकि जांच में उनके परिवार के नाम गोरखपुर में दो बड़े आवासीय भूखंड होने की बात सामने आई है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यह मामला ने तूल पकड़ लिया। लोग दावा कर रहे थे कि सिद्धार्थ कुमार सिंह ने तहसील से 8 अप्रैल 2022 और 21 अगस्त 2023 को EWS प्रमाणपत्र हासिल किए थे, जो कथित तौर पर फर्जी हैं।
जिला मजिस्ट्रेट (DM) ने मंत्रालय के निर्देश पर जांच की। जांच में गोरखपुर में सिद्धार्थ के माता-पिता के नाम दो मकान होने की पुष्टि हुई। EWS कोटे के नियमों के अनुसार, यदि उम्मीदवार या उसके परिवार के पास एक से अधिक आवासीय संपत्ति है, तो वह इस कोटे के लिए पात्र नहीं होता। ऐसे में सिद्धार्थ के EWS प्रमाणपत्र की वैधता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
इस मामले में परीक्षा के नोडल संचार विभाग को शिकायत मिली थी, कि 17 हजार वर्ग फीट से अधिक जमीन सिद्धार्थ के माता-पिता के नाम गोरखपुर में है। जिसके बाद जिलाधिकारी को पत्र लिखकर मामले की जांच के निर्देश दिए थे। डीएम ने एडीएम सिटी अंजनी सिंह से मामले की जांच कराई जिसमें पाया गया कि सिद्धार्थ के माता-पिता के पास गोरखपुर के महादेव झारखंडी टुकड़ा नंबर तीन 829.75 वर्ग मीटर और करीब 900 वर्ग मीटर में भूखंड है।
यह मामला केवल सिद्धार्थ तक सीमित नहीं है; यह यूपीएससी की चयन प्रक्रिया में EWS कोटे के दुरुपयोग की व्यापक समस्या को उजागर करता है। हाल के वर्षों में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां उम्मीदवारों पर फर्जी प्रमाणपत्रों के जरिए कोटा लाभ लेने के आरोप लगे हैं। 2024 में पुजा खेड़कर केस ने भी खूब सुर्खियां बटोरी थीं, जिसमें पुजा पर OBC और दिव्यांग कोटे का दुरुपयोग करने का आरोप लगा था। इसी तरह, 2021 बैच के आईएएस रवि सिहाग पर भी EWS प्रमाणपत्र को लेकर सवाल उठे थे। सोशल मीडिया पर इस तरह के मामलों को लेकर गर्मागर्म बहस छिड़ी हुई है। कुछ लोग सिद्धार्थ का समर्थन कर रहे हैं, जबकि अन्य लोग सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
इस मामले ने प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार के मुद्दे को भी सामने ला दिया है। EWS प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और जमीनी स्तर पर सही जांच न होने की वजह से ऐसे मामले बार-बार सामने आ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर नियमों का सख्ती से पालन किया जाए और प्रमाणपत्रों की गहन जांच हो, तो इस तरह की अनियमितताओं पर रोक लगाई जा सकती है।
सिद्धार्थ कुमार सिंह की ओर से अभी तक इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। इस मामले ने यूपीएससी की चयन प्रक्रिया पर फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या EWS कोटे का लाभ वाकई जरूरतमंदों को मिल रहा है, या यह एक “शॉर्टकट” बन गया है? यह सवाल अब हर किसी के मन में है।
जांच अभी जारी है, और इस मामले में अंतिम फैसला आने तक सिद्धार्थ कुमार सिंह और यूपीएससी की चयन प्रक्रिया पर सवाल उठते रहेंगे। इस बीच, यह मामला एक बार फिर हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि आरक्षण व्यवस्था का सही लाभ कैसे सुनिश्चित किया जाए, ताकि वास्तविक जरूरतमंदों को उनका हक मिल सके।