एक महीने पहले ही NEET की तैयारी करने कोटा आई छात्रा ने फांसी लगाई।

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भारत के कोचिंग हब कहे जाने वाले कोटा शहर में एक और दुखद घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया है। जम्मू-कश्मीर की रहने वाली 17 वर्षीय छात्रा जीशान जहां, जो नीट (NEET) की तैयारी के लिए कोटा आई थी, ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी। जीशान को कोटा आए हुए अभी महज एक महीना ही हुआ था। इस घटना के साथ ही कोटा में इस साल छात्रों की आत्महत्या का आंकड़ा 17 तक पहुंच गया है, जो एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है।

जीशान जहां ने नीट की तैयारी के लिए कोटा के एक नामी कोचिंग संस्थान में दाखिला लिया था। बताया जा रहा है कि वह अपने परिवार की उम्मीदों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही थी, लेकिन पढ़ाई का दबाव और प्रतिस्पर्धा शायद उसके लिए असहनीय हो गया। पुलिस ने प्रारंभिक जांच में इसे आत्महत्या का मामला बताया है, लेकिन अभी तक कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ है। जीशान के परिजनों को सूचना दे दी गई है, जो कोटा पहुंच रहे हैं।

यह घटना कोई पहली घटना नहीं है। कोटा में पिछले कुछ सालों से छात्रों की आत्महत्याओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। साल 2023 में 24 छात्रों ने आत्महत्या की थी, वहीं 2024 में यह संख्या 15 थी। इस साल 2025 में अब तक 17 मामले सामने आ चुके हैं। कोटा, जो कभी शिक्षा का केंद्र माना जाता था, अब छात्रों के लिए मानसिक दबाव का पर्याय बनता जा रहा है। नीट और आईआईटी-जेईई जैसे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए हर साल लाखों छात्र यहां आते हैं, लेकिन सफलता का दबाव और असफलता का डर कई युवा जिंदगियों को निगल रहा है।

हाल ही में, 23 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को फटकार लगाते हुए सवाल किया था, “आखिर कोटा में ही इतनी आत्महत्याएं क्यों हो रही हैं? राज्य सरकार इस दिशा में क्या कदम उठा रही है?” कोर्ट ने सरकार की निष्क्रियता और ऐसे मामलों में FIR दर्ज करने में देरी पर नाराजगी जताई थी। सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2024 में एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन भी किया था, जो छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर काम करे, लेकिन इसके बावजूद स्थिति में सुधार नहीं दिख रहा।

स्थानीय प्रशासन ने पहले भी कई कदम उठाए हैं, जैसे कोचिंग संस्थानों में टेस्ट और परीक्षाओं पर दो महीने की रोक लगाना और छात्रों के लिए मानसिक स्वास्थ्य प्रश्नावली तैयार करना। इसके अलावा, छात्रावासों में स्प्रिंग-लोडेड पंखे लगाने और काउंसलिंग सुविधाएं बढ़ाने जैसे उपाय भी किए गए, लेकिन ये कदम नाकाफी साबित हो रहे हैं।

मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि कोटा में पढ़ाई का माहौल इतना तनावपूर्ण है कि कई छात्र अकेलेपन और डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। अभिभावकों और समाज की ओर से सफलता को जिंदगी का एकमात्र लक्ष्य मानने की मानसिकता भी इस दबाव को बढ़ा रही है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि कोचिंग संस्थानों को मानसिक स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देना चाहिए, नियमित काउंसलिंग सत्र आयोजित करने चाहिए और हेल्पलाइन को सक्रिय करना चाहिए।

इस घटना ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर कब तक कोटा में युवा सपनों की बलि चढ़ती रहेगी? क्या सरकार और समाज इस गंभीर मुद्दे पर ठोस कदम उठाएंगे, या यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा? यह समय है कि शिक्षा के इस केंद्र को एक बार फिर से सपनों को पंख देने वाला बनाया जाए, न कि जिंदगियों को खत्म करने वाला।

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