उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एक ऐसे खूंखार अपराधी की कहानी सामने आई है, जिसने न केवल कानून को चुनौती दी, बल्कि न्याय व्यवस्था पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। देवेंद्र शर्मा, जिसे ‘डॉक्टर डेथ’ के नाम से जाना जाता है, को 125 लोगों की किडनी निकालकर बेचने और 50 से ज्यादा लोगों की हत्या करने के लिए उम्रकैद और फांसी की सजा सुनाई गई थी। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि उसे दो बार पैरोल मिला और दोनों ही बार वह तय समय पर जेल वापस न जाकर भाग निकला।
देवेंद्र शर्मा को 2004 में राजस्थान में गिरफ्तार किया गया था, जब वह टैक्सी ड्राइवरों की हत्या और उनकी किडनी निकालकर बेचने के एक बड़े रैकेट में शामिल पाया गया। उसने पुलिस जांच के दौरान कबूला कि उसने 1994 से 2004 के बीच 125 से ज्यादा किडनी ट्रांसप्लांट गैरकानूनी तरीके से किए, जिसमें उसे प्रत्येक ट्रांसप्लांट के लिए 5 से 7 लाख रुपये मिले। इसके अलावा, उसने 50 से ज्यादा लोगों की हत्या की और शवों को मगरमच्छों वाली नहर में फेंक दिया।
शर्मा को सात मामलों में उम्रकैद और एक मामले में फांसी की सजा सुनाई गई। लेकिन 2020 में, उसे 20 दिन की पैरोल दी गई, जिसके दौरान वह जेल वापस न जाकर फरार हो गया। इसके बाद, दिल्ली पुलिस ने उसे फिर से गिरफ्तार किया, जब पता चला कि वह पैरोल के दौरान दिल्ली में रह रहा था और यहां तक कि एक फर्जी गैस एजेंसी भी चला रहा था।
इस घटना ने न्यायिक व्यवस्था और पैरोल प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ओर जहां गंभीर अपराधियों को पैरोल देना समाज की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है, वहीं दूसरी ओर, बेगुनाह लोगों को जेल में पानी पीने के लिए सिपर तक नहीं मिलता। सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा हो रही है, और लोग न्याय व्यवस्था की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहे हैं।
इस मामले में एक और चौंकाने वाला तथ्य यह है कि शर्मा को दूसरी बार भी पैरोल मिला, जबकि उसका आपराधिक इतिहास और फरार होने की प्रवृत्ति स्पष्ट थी। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि पैरोल देने से पहले अपराधी के व्यवहार, समाज में उसकी पुनर्स्थापना की संभावना और निगरानी की व्यवस्था का सख्ती से मूल्यांकन होना चाहिए। लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ, जिससे न्यायिक व्यवस्था पर अविश्वास बढ़ा है।
देवेंद्र शर्मा का मामला न केवल एक व्यक्ति की आपराधिक गतिविधियों का उदाहरण है, बल्कि यह भारतीय न्यायिक व्यवस्था में मौजूद खामियों को भी उजागर करता है। इस घटना ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया है कि कानून का डर अपराधियों में होना चाहिए, लेकिन जब कानून ही उन्हें संरक्षण देने लगे, तो समाज की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है।